Friday 5 June 2015

शेरकोट के कारखाना मालिकों से हमारी मांगे: मज़दूर बचाओ आंदोलन ज़िंदाबाद


            
            ये तस्वीर एक छोटे बच्चे की नहीं बल्कि एक क़ौम की हालत को बयां कर रही है। ये बच्चा उन कारखानो में काम करने वाले मज़दूरों की औलाद है जो सालों से अपनी ग़ुरबत पे लानत भेजते आ  रहे हैं। में इस तरह तसवीर को क़ुछ  इसलिए भी पसंद करता हूँ क्योकि मुझे इनमे अपना बचपन दिखाई देता है। सात साल की हाथ में हथोड़ी लिए जब में पत्थर तोड़ता था तो ज़हन में इंक़िलाब ले आने के ख्याल आते थे। ज़हन को झटक कर में फिर से काम पे लग जाया करता था।  उस वक़्त ये अजीब लगता था लेकिन आज जब में पीछे पलट कर देखता हूँ तो यकीन ही नहीं होता की में पत्थर तोड़ने वाला बच्चा, फड़ो पर बैठकर तेल और आटे  के भाव लगाने वाला, परचून की दुकान पर बैठकर किताब पढ़ने वाला आज एक राइटर/स्कोलर की हैसियत से जाना जाता हूँ। पर  जब भी में अपने हमवतन भाइयों  और बहनो को पीछे पलट के देखता हूँ तो सिवाए अफ़सोस के कुछ नहीं दिखता ।  एक मज़दूर 20 सालों से नौकरी करता है लेकिन आज तक अपने बच्चो के लिए एक साइकिल तक नहीं खरीद पाया जबकि ''मालिक'' का बच्चा हर महीने स्विफ्ट, जाइलो  और ऑडी बदलता है।  हमें अपनी ग़रीब मईशत की वजह तलाश करनी चाहिए।  ये बात तुम क्यों भूल जाते हो की मालिक के घर का चूल्हा हम ही ग़रीब मज़दूरों की वजह से जलता है। तो क्या ये अब हम पढ़े लिखे नौजवानों  की ज़िम्मेदारी नहीं बनती।  तो क्या हम हाथ पे हाथ रख के इनकी भूक और ग़रीब मईशत  के तमाशाई बने रहें , तो क्या हमें अपनी क़लम से सही को सही और ग़लत को ग़लत नहीं कहना चाहिए।  
              शेरकोट कारोबार के लिहाज़ से बहुत तरक्की याफ्ता क़स्बा है ,इसे ब्रश नगरी के नाम से भी जाना जाता है।  दुनिया के दूसरे मुल्कों ,शहरों और क़स्बों की तरह ब्रश नगरी में भी अमीरी और ग़रीबी जग ज़ाहिर है। कमज़ोर और अनपढ़ तबके को अमीरो की जमात ने ज़ेहनी ग़ुलाम बना के रखा है। में क्या देखता हूँ जो यकीनन दूसरे लोग भी देखते हैं पर सच को सच नहीं लिखते। इन कारखानो में काम करने वाले मज़दूरों की नस्लों ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। अमीरो की जमात ग़रीबो को कभी आगे नहीं बढ़ने देगी और इन्हे हमेशा अपने कारखानो में ज़ेहनी ग़ुलाम बना के रखेगी।  हम जैसे ग़रीब लोग अपनी भूक और ग़रीबी की खातिर ये ग़ुलामी बर्दाश्त करेंगे और अगली सदियों तक बदलाव नहीं आ पायेगा। हम ग़रीबो को अगर मालिक पढ़ने की सलाह दे  देंगे तो कारखानो में काम करने के लिए मज़दूर के लाले पड़ जाएंगे तो कौन बेवक़ूफ़ पढ़ने लिखने की सलाह दे।  
                  मै क्या देखता हूँ जो तुम भी यकीनन देखते हो पर सच को सच नहीं कहते की इन ग़रीब कारीगरों की नस्लें ताक़ियामत मज़दूर रहेंगी।  वजह ! इनकी कमज़ोर मईशत , भूक और ग़रीबी।  मै क्या देखता हूँ जो यकीनन तुम भी देखते हो पर सच को सच नहीं कहते की इन मज़दूरों ने ज़िन्दगी कारखानों में गुज़ार दी, अब इनकी अगली नस्ल तैयार है ''मालिक'' की खिदमत करने के लिए।  मालिक का बेटा  विलायत पढ़ने गया है पर मालिक अपने कारखाने के मज़दूर ''ग़फ़ूर'' से उसके बच्चों  को ना पढ़ने की सलाह देंगे और कहेंगे ''मुसलमानो को कोनसी नौकरी मिलती है, पढ़ा लिखा कर क्या करोगे'' मालिक दो या तीन लाख रूपये बतौर  क़र्ज़ दे देंगे फिर उसे सूद समेत वापिस लेते रहेंगे और ग़फ़ूर सारी ज़िन्दगी मालिक के कारखानों  में मज़दूरी करके क़र्ज़ चुकता करता रहेगा।  
              ''मालिक'' ये बात जानते थे जब हम जैसे ग़रीबो के बच्चे स्कूल और कॉलेज में दाखिल होंगे तो यकीनन इंक़िलाब आ जायेगा।  अज़ीज़ दोस्तों ! सच हम सब जानते हैं पर कहने की हिम्मत नहीं करते। में पूछता हूँ कब तक ये ग़ुलामी बर्दाश्त करते रहेंगे। अपने लिए ना सही अपनी आने वाली नस्लों के लिए बदलो। अपने हक़ की आवाज़ बुलंद करो।  कब तक ज़ुल्म की चक्की में पिस्ते रहोगे। आओ ,एक इंक़िलाब लाएं , आओ,बदलाव लाएं, आओ, इन मालिकों  से अपने अच्छी ज़िन्दगियों का मुतालबा करें।  

शेरकोट के कारखाना मालिकों से हमारी मांगे 

1. हिंदुस्तानी क़ानून के Article  19 और International Labor Organisation के कन्वेंशन 87 और 98 के मुताबिक मज़दूरों को अपनी यूनियन बनाने की आज़ादी मिलनी चाहिए।  
2.  Article No. 23 के मुताबिक किसी भी मज़दूर से ज़बरदस्ती मज़दूरी नहीं करायी जाएगी।  
3. Child Labor (Protection and Regulation) Act के Article 24 और International Labor Organisation के Convention No. 138 और 182 के तहत किसी भी 14 साल के काम उम्र के बच्चे से मज़दूरी नहीं करायी जाएगी।  
4. Article 42 के मुताबिक किसी भी मज़दूर से उसको नुक्सान पहुचाने वाला काम नहीं कराया जायेगा।  
5. Article 14 ,15 और 16 और International Labor Organisation के कन्वेंशन नंबर 100 और 111 के तहत किसी भी मज़दूर को उंच नीच की भावना से नहीं देखा जायेगा।  
6. Minimum Wages Act  के तहत ही महीने की तनख्वाह दी जानी चाहिए।  
7. Payment of Bonus Act के तहत मज़दूरों को कारखानों  की बचत में से बोनस दिया जायेगा।  
8. Industrial Employment Act के तहत वर्किंग टाइम 8 घंटे एक दिन में होना चाहिए और Weekly Holidays Act के तहत मज़दूरों को छुट्टी मिलनी चाहिए।  
9. Workmen Compensation Act के तहत अगर किसी मज़दूर को कोई चोट पहुँचती है तो उसका हरजाना  कारखाने मालिको को करना होगा।  जब तक मज़दूर ठीक नहीं हो जाता तब तक तनख्वाह दी जाती रहेगी। 
10.  Maternity Benefit Act के तहत अगर कारखाने में कोई ज़नाना मज़दूर हो तो उस हामला औरत को उसका खर्च देना चाहिए।  
11. Equal Remuneration Act के Article 39 के तहत औरत और मर्द की तनख्वाह में कोई फर्क नहीं होना चाहिए।  
12. Bonded Labor System (Abolition) Act और International Labor Organisation के कन्वेंशन 29 और 105 के तहत किसी भी मज़दूर को ज़बरदस्ती नहीं रखा जायेगा अगर उसने मालिको से क़र्ज़ लिया है तब भी।  
13. मज़दूरों को इंडियन लेबर लॉ के मुताबिक लगातार काम करने में तीस मिनट का आराम मिलना चाहिए।  
14. Industrial Dispute Act और International Labor Organisation के कन्वेंशन 158 के तहत किसी भी मज़दूर को बिना कोई वजह के नौकरी से नहीं निकला जा सकता है। 
15. Interstate Migration Workmen Act के तहत किसी भी मज़दूर को जो दुसरे स्टेट या मुल्क जैसे नेपाल , भूटान वगैरा से आता है बराबर की तनख्वाह मिलनी चाहिए और उसके घर आने जाने की तनख्वाह मिलनी चाहिए।  मेडिकल और रिहाइश की सहूलियत होनी चाहिए।  
16. मज़दूरों को शिकायत दर्ज करने का हक़ मिलना चाहिए।  
17. मज़दूरी की तनख्वाह बैंक अकाउंट में जानी चाहिए।  
18. मज़दूरों को फैक्ट्री के शिनाख्त कार्ड  मिलने चाहिए।  
19. किसी भी मज़दूर से इस तरह के काम नहीं कराये जायेगे जो किसी की ज़ाती वक़ार पे चोट पहुंचाए जैसे घरो में झाड़ू लगवाना , टॉयलेट साफ़ करना वगैरा। 
20. Article 38  के तहत मज़दूरों के बच्चो को आगे की पढ़ाई के लिए स्कालरशिप देनी चाहिए।
21. मज़दूरों की तनख्वाह को महँगाई के हिसाब से बढ़ाना चाहिए। 
                    मुझे पूरा यकीन है की ''मज़दूर बचाओ आंदोलन'' एक दिन सिर्फ शेरकोट में ही नहीं पूरे हिंदुस्तान में पहुंचेगा जो लोग इस आंदोलन में शामिल होंगे वो कड़वी और खरी खोटी सुनने को हर वक्त तय्यार रहें।  ऐसा भी मुमकिन है की इस आंदोलन में मेरी और मेरे साथियो की जान जा सकती है और कारखाना मालिक तरह तरह के हथकंडे अपना कर हमें और हमारे खानदान को परेशान करें लेकिन ये बात याद रखनी होगी की विद्रोही को मार देने से विद्रोह कभी ख़त्म नहीं होगा।  बदलाव एक दिन ज़रूर आएगा।  हो सकता है हमारे आंदोलन को कामयाब होने में सालों लगे पर फिर भी हम सब्र से काम लेंगे और जद्दो जेहद जारी रखेंगे मुझे पूरा यकीन है बदलाव एक दिन ज़रूर आएगा।  हाथ में हथोडी लिए इस बच्चे के हाथ में एक दिन क़लम होगा और वो हमारे कारनामो को तारीख के पन्नो में हमेशा के लिए शामिल कर देगा।  अगली नस्ले हमारी बहादुरी के क़िस्से अपने बच्चो को ज़रूर सुनायेगी।  और आखिर में इतना ही कहूँगा -
मेरे ख्वाबो को छीना है किसी ने,
में अपनी बेहिसी पे मुस्तहिक़ हूँ,
मेरे लहजे में सच का बाँकपन है,
में ''शेरकोट'' की ज़िंदा नस्ल हूँ,
''इंक़िलाब ज़िंदाबाद''



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