Tuesday 24 February 2015

अछूतों के लिए हमें क्या करना चाहिए?

भारतवर्ष शुरू से ही ऊँच नीच और ज़ात पात का साक्षी रहा है , धर्म और जाती के नाम पर हमारे देश में गरीब और दबे कुचले लोगो पर अत्याचार होता रहा , धर्म के नाम का डर बनाकर नीची जाती के लोगो का अत्याचार होता रहा, ये जात पात जैसा की मेने अपने पिछले लेख में कहा है हमारे पूर्वजो की सबसे महत्वपूर्ण खोज है ,आज के वर्तमान युग में इसी महत्वपूर्ण खोज का लाभ राजनीति में भरपूर लिया जाता है . ये लेख भी पिछले लेख की ही तरह दिमागी ग़ुलामी पर आधारित है . हमने दुनिया में हो रहे ज़ुल्मो को अपनी आँखों से देखा है . चाहे वो साउथ अफ्रीका में हो रहे गोर और काले का अत्याचार हो या अमेरिका जैसे देश में हो रहे अत्याचार हो , कुछ धनी वर्ग के लोगो ने ऐसी पालिसी खोज निकली जिसकी ज़रिये अनंत काल तक एक राजा राजा बना रहे और प्रजा प्रजा . एक राजा के आदेश पर तमाम मानवता का क़त्ल कर दिया गया . इसी अतयाचार का साक्षी हमारा भारत जिसमे गरीब और नीच जात कहे जाने वाली जातियों पर सदियों से ग़ुलामी की जंजीर डाल दी गयी . वेदो का अध्ययन सिर्फ ऊँची जाती को प्राप्त था . कमज़ोर वर्ग के व्यक्तियों को किसी भी काम में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं थी . अगर उनमे से कोई क्रन्तिकारी पैदा हुआ तो उसको जुल ओ सितम का निशाना बनना पड़ा . उच्च वर्ग के चुनिंदा लोगो ने गरीबो पे ज़ुल्म , औरतो पर बलात्कार और मानसिक दासता की बेड़िया पहना दी .

अपने को उच्च वर्ग के कहने वाले लोग हरिजन के साथ जो व्यव्हार करते हैं उसमे सबसे महत्वपूर्ण चीज़ ये है की नीची जाती कही जाने वाले लोगो को किसी भी तरह का व्यवसाय करने नहीं दिया जाता जिससे वो अपनी आजीविका सफाई करके और शोचालो को साफ़ करके ही चला पाता है . पंसारी की दुकान , मिठाई की दुकान और भोजनालय खोलने की तो बात ही नहीं , कपडे और रासायनिक तत्वों की भी दुकान वो नहीं खोल सकते , यदि खोल भी ले तो कुछ ही दिन में उनका दिवाला निकल जाए . भारत की अधिकांश जनता कृषि पर आधारित है परन्तु कुछ ही हरिजन के पास अपनी ज़मीन है . तमाम साहूकार और ज़मीदार उच्च वर्ग के लोग हैं . हरिजन जो अधिकतर खेतो में मज़दूर हैं ग़ुलामो से अच्छी परिस्थिति में नहीं हैं , थोड़े से पैसे उधर लेकर उन्हें अपना शरीर बेचना पड़ता है ,उनके मालिक , उनकी केवल वही आवश्यकता पूरी करते हैं जिनसे वे केवल प्राण धारण कर सके . पुश्ते बीत जाती हैं किन्तु क़र्ज़ अदा नहीं होता . काम खोजने में उनका स्वतंत्र अधिकार नहीं .

भारतवर्ष के अन्याय ग्रामीणो की भाति ,उनको अपने ग्रामो से इतना प्रेम है की अपनी दरिद्र झोपड़ियो का परित्याग करना उनके लिए असंभव है . राजदंड से बचना उनके लिए संभव है किन्तु इस अमानुषिक प्रथाओ के हथकंडो से बचना मुश्किल है .रहने , सोने में भी बंधन हैं . इनकी अपनी बस्तिया है जिनमे कोई उच्च वर्ग का व्यक्ति नहीं जाता . वे इन प्रथाओ के प्रीति टस से मस नहीं हो सकते यदि करे तो उन्हें दंड दिए बिना नहीं छोड़ा जायेगा . नगरो में कुछ स्वतंत्रता है पर गाव का माहोल गला घोटू है .
उनकी वर्तमान स्तिथि दयनीय है और भविष्य भी अंधकार में . इसीलिए उसमे मौलिक परिवर्तन की आवश्यकता है . आज भारत एक लोकतान्त्रिक देश है जिसमे सभी धर्मो को आज़ादी है सभी जातियों को आज़ादी है . हर कोई अपने तरह से जीवन यापन कर सकता है . आज निचले वर्ग के लोगो को रिजर्वेशन दिया जाता है . लेकिन फिर भी गाव में बेस लोगो को इसका लाभनही जिसकी सबसे बड़ी वजह उनकी आर्थिक स्थिति है .
क्या रिजर्वेशन आज अछूतों को न्याय दिलाने के लिए काफी है . आज यकीनन अछूतों की परिस्थिति में बदलाव आया है और उनकी आर्थिक स्थिति पहले से सुधर गयी है पर क्या सिर्फ ये ही काफी है . आज भी उन्हें घिर्णा की द्रष्टि से देखा जाता है . भारत के लोकतान्त्रिक देश होने के बावजूद भी दलित को दलित की ही नज़रो से देखा जाता है . जैसा की मेने अपने पिछले लेख में कहा था मानसिक दासता शारीरिक दासता से कही ज़्यादा ऊपर है . हमें ज़ेहनी क्रांति लाने की ज़रूरत है . आज भी उच्च वर्ग के चुनिंदा लोग किसी दलित के साथ खान पान करने में संकोच करते हैं . आज भी दलित अपनी मानसिक दासता से गुज़रता है . अगर किसी को ग़ुलाम बनाना है तो उसके दिमाग को ग़ुलाम बना लेना चाहिए . सदियों से इन घुमलो को न्याय आखिर इस देश में कब मिलेगा .क्या ये भारत के देश वासी नहीं हैं . सच ये है की इसी अखंड भारत में दो भारत बस्ते हैं एक उच्च वर्ग का भारत और नीची जाती का भारत .
आज अछूतों के लिए मंदिर के द्वार खोल दिए जाने के लिए के हमें खुलकर प्रचार करना चाहिए . इसके लिए हमें समय नहीं खोना चाहिए . ये पुरोहितो की चालाकी ही है जो की उनकी वर्तमान अधोगति का कारण है .
पुजारी , धरम ,मदिर , मस्जिद या चर्च को जहन्नुम में जाने दे . अगर हमारे सामने अपने देश और अपने लिए कोई सच्चा आदर्श है तो इनकी आर्थिक विषमताओं का अध्ययन कीजिये और उनको दूर करने की चेष्टा कीजिये . यदि हम शीघ्रता से हरिजनों की परिस्थिति सुधारना चाहते हैं तो ये आवयशक है की हम उनके साथ नया बंदोबस्त करे . इस प्रकार से गाव के पुराने ख्याल वालो की बाधाओ से हम हरिजनों को बचा सकते हैं . 
शहरों और कस्बो में उनके लिए बस्तिया बासनी चाहिए . उनलोगो को ऐसे गृह शिल्पों के उपयोगी तरीके सीखने चाहिए जिनमे उन्हें रोज़गार दिलाने की छमता हो . शहरों और कस्बो में आने से वो संकीरता से मुक्त हो जाते हैं और यहाँ जीवन को नए तोर से शुरू कर सकते हैं .अगर वे आर्थिक द्रष्टि से उन्नत बन जाये , शिक्षा प्राप्त करे , सफाई का ख्याल रखे तो छूत छात का अस्तित्व ज़्यादा दिनों तक नहीं रहेगा .
ये असमानता तब ही दूर हो सकती है जब की सामाजिक बंधनो को तोड़ने में हम साहस से काम लें और एक दूसरे के कोमल भावो पर खुला प्रहार करने को तैयार हो . हम लोग को ऐसा समाज बनाना चाहिए जिसमे आने वाला हिन्दू हो मुस्लमान हो छूत हो या अछूत सब एक साथ खान पान करे . हमको ये ख्याल नहीं करना चाहिए की साधारण लोग क्या कहेंगे . किसी भी सामाजिक क्रांति में शामिल होने वालो को कुछ कड़वा मीठा सहने के लिए तैयार रहना चाहिए . समाज की रूढ़ियों को तोडना और उसके द्वारा उनकी आँखों में काटे की तरह चुभना जेल और फांसी से भी ज़्यादा साहस का काम है . हमें हर तरह की कुर्बानियो के लिए तैयार रहना चाहिए . हमें शादी ब्याह अपने से दूसरी जातियों में करना चाहिए . शादी ब्याह के वक्त हमें जाती का संकोच नहीं होना चाहिए . 
ये ज़िम्मेदारी सबसे ज़्यादा आज के शिक्षित और युवा वर्ग पर निर्भर है . हमारा युग और शिक्षित वर्ग इस क्रांति के लिए बिलकुल तैयार रहना चाहिए . हम अपनी शिक्षा से अगर समाज की रूढ़ि सोच को न तोड़ सके तो हमारी शिक्षा का क्या मतलब है . जो शिक्षित वर्ग शिक्षित होने के बाद भी इस जाती प्रथा का साथ दे ऐसे वर्ग से हमें नुक्सान ही है जो भारत की तरक्की के लिए बहुत ही घातक सिद्ध होगा .
आज जाती पाती और ऊँच नीच से मुसलमान से अछूत नहीं है और क्यों न हो आखिर को हिंदुस्तान में मुसलामन दलित और हिन्दू से मुस्लिम बने पर इस बात पे बहुत ही अफ़सोस होगा इतने सालो बाद भी मुसलमान ने आज भी इन सामजिक बुराई से आज़ादी हासिल नहीं की . इसका दोषी कौन है . हमें इस विषय में सोचना चाहिए .
(नोट: मेरा किसी धर्म विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है और में साम्यवाद का समर्थक हू)


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